नजर नहीं आता कहीं, समता का अधिकार।
शांति तभी तो देश की, झेले क्रूर प्रहार।।
जिनके त्याग दुलार से, पाता सदन निखार।
नहीं आज तक पा सकीं, समता का अधिकार।।
समता का अधिकार जब, प्राप्त करेगा प्यार।
हर्षित होगी एकता, सुधरेगा संसार।।
अपनी – अपनी त्याग कर, सोचो सबकी बात।
समता के अधिकार का, तब हो पुलकित गात।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश