धर्म भी निरपेक्ष यह अय्यारियाँ हैं देश में,
नाम मज़हब पर कई बीमारियाँ हैं देश में ।
सिर्फ बातें प्यार की होती दिखावे के लिए ,
देखिये गृह युद्ध सी तैयारियाँ हैं देश में ।
हृदय में रूखी गमी है शुष्क आंखों में नमी,
हर गली हर मोड़ पर मक्कारियाँ हैं देश में ।
तन तिरंगे को न ओढ़े मन तिरंगे में नहीं ,
कुछ पड़ौसी घाट की पनिहारियाँ है देश में ।
देश यदि निरपेक्ष है तो मज़हबी कानून क्यों,
हिंदुओं के साथ क्यों गद्दारियाँ हैं देश में ।
सात दशकों से किए संघर्ष का फल मिल रहा ,
अब नए युग की नई किलकारियां हैं देश में ।
राष्ट्र की संपन्नता से दिलजले हैरान हैं ,
हिंद का दिल चीरती कुछ आरियां हैं देश में ।
हिंदुओं को गालियां निरपेक्षता की मापनी ,
जाति मज़हब की कई दुस्वारियां हैं देश में ।
ख़ास” हलधर” मुल्क इसकी सभ्यता नायाब है ,
सैकड़ों भाषा लिपी फुलवारियां हैं देश में ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून