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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

धर्म भी निरपेक्ष यह अय्यारियाँ हैं देश में,

नाम मज़हब पर कई बीमारियाँ हैं देश में ।

 

सिर्फ बातें प्यार की होती दिखावे के लिए ,

देखिये  गृह युद्ध  सी  तैयारियाँ हैं  देश में ।

 

हृदय में रूखी गमी है शुष्क आंखों में नमी,

हर गली हर मोड़ पर मक्कारियाँ हैं देश में ।

 

तन तिरंगे को न ओढ़े मन  तिरंगे में नहीं ,

कुछ पड़ौसी घाट की पनिहारियाँ है देश में ।

 

देश यदि निरपेक्ष है तो मज़हबी कानून क्यों,

हिंदुओं के साथ क्यों  गद्दारियाँ  हैं  देश में ।

 

सात दशकों से किए संघर्ष का फल मिल रहा ,

अब नए युग की नई किलकारियां हैं देश में ।

 

राष्ट्र की संपन्नता से दिलजले हैरान हैं ,

हिंद का दिल चीरती कुछ आरियां हैं देश में ।

 

हिंदुओं को गालियां निरपेक्षता की मापनी ,

जाति मज़हब की कई दुस्वारियां हैं देश में ।

 

ख़ास” हलधर” मुल्क इसकी सभ्यता नायाब है ,

सैकड़ों भाषा लिपी फुलवारियां हैं देश में ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

 

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