दर्द इतना कहाँ था कभी,
हाल बेहाल ना था कभी।
वो हमें छोड़ कर क्या गईं,
आफतें गम भरा था कभी।
इस कदर छोड़ना ना सही,
बेजुबां हो गया था कभी।
रातदिन लब पुकारे कहाँ,
पूछता ढूंढ़ता था कभी।
क्या हुआ सोंचते हर घड़ी,
जख्म ऐसा कहाँ था कभी।
आह से दिल जला जा रहा,
ये सजा ना मिला था कभी।
जी रहें इक नई जिंदगी,
चोट झेला कहाँ था कभी।
‘अनि’ पुकारें निहारे सदा,
इस तरह कब हुआ था कभी।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड