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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

सर्दी का शासन खत्म हुआ, अब ऋतु वसंत का स्वागत हो ।

खेतों में फसलें लहलायें ,खुशहाली हो नित दावत हो ।

 

सोने के भाव बिकें फसलें, हालात किसानों के सुधरें ,

भूखों को दाना पानी हो ,महंगाई से कुछ राहत हो ।

 

माना अधिकार आपका है ,धरना प्रदर्शन करने का ,

लेकिन मर्यादा मत लांघो ,व्यक्तिगत नहीं अदावत हो ।

 

हालात भले ही कैसे हो ,लेकिन इतना बस ध्यान रहे ,

अब लाल किले जैसी हरकत की, आगे नहीं वकालत हो ।

 

संवैधानिक अनुशासन हो, कानूनों का सम्मान रहे ,

खेती बाड़ी के मुद्दों पर , ना गंदी और सियासत हो ।

 

कल्याण किसानों का होवे, निर्माण नये भारत का हो,

खोजें हम राह सुधारों की, बेसक कितनी भी लागत हो ।

 

सौगंध राष्ट्र के हित में हों ,संकल्प देश के हित में हों ,

बेसक हों भिन्न जाति मज़हब, लेकिन अंतस में भारत हो ।

 

चैनल पर गाली मत बोलो,मत व्यक्तिगत आरोप मढो ,

“हलधर” विद्रोही भाव तजो ,आगे अब नहीं बगावत हो ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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