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मेरी कलम से – सन्तोषी दीक्षित

तुम इजहार कर देते तो हम इकरार कर लेते,

तुम रूकने को कह देते तो इन्तजार कर लेते।

हमें क्या पता खामोश रह कर रूठ जाओगे,

तुम कुछ तो जता देते तो हम मनुहार कर लेते।

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अन्तर मन झकझोरे जब, बात निकल ही आती है,

होठों पर मुस्कान सजी है,पर आंखों में पानी है।

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सांसें आनी जानी है,बाकी सब बेमानी है,

ईश्वर ही तो अपना है, दुनिया ये बेगानी है,

झंझावत तो आते हैं,हार न मैंने मानी है,

जीवन में संघर्षों की अपनी अलग कहानी है,

– सन्तोषी दीक्षित देहरादून, उत्तराखंड

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