फागुन फागुन आया रे,
मन भावन आया।
खुशियों की बहार में,
मस्ती बेशुमार लाया।
अबीर उड़े है, गुलाल उड़े हैं ,
उड़े हैं रंग सारे ।
मुझको भाये प्रीतम के
संग दिन ये कितने प्यारे
है ये प्रेम की होली,
बैर रहे ना कोई।
खुशियों की बहार में
मस्ती बेशुमार लाया।
फागुन फागुन आया रे।।
धानी चुनरिया ओढ़ के मैं,
प्रीत के रंग रंगाऊ।
सजना के संग खेलूँ होली,
मन ही मन इतराऊ।
चूनर उड़ती चले,
पूर्वा बहती चले।
खुशियों की बहार में
मस्ती बेशुमार लाया।
फागुन फागुन आया रे।।
हाथ में चूड़ी पहन के मैं,
कंगना से टकराऊ।
खनखन करती चूड़ियों से,
साजन को रंगाऊ
मन में उमंग उठे,
दिल खींचा चले।
खुशियों की बहार में
मस्ती बेशुमार लाया।
फागुन फागुन आया रे।।
फागुन फागुन आया रे,
मनभावन आया।
खुशियों की बहार में
मस्ती बेशुमार लाया।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड