किस की नज़र का असर है,
दिल आज खुद से बेखबर है।
शब-ए-खुमारी कहाँ उतरी ,
इश्क़ का नशा इस कदर है।
बेशक मर जाए जिस्मे-इंसां,
रूह-ए-मुहब्बत तो अमर है।
तेरी आमद का ख्याल लेके ,
फिर सजाया उजड़ा घर है।
कभी ख्वाब में कभी ख्याल में,
निराश करता ऐसे गुज़र है।
– विनोद निराश, देहरादून