मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

किस की नज़र का असर है,

दिल आज खुद से बेखबर है।

 

शब-ए-खुमारी कहाँ उतरी ,

इश्क़ का नशा इस कदर है।

 

बेशक मर जाए जिस्मे-इंसां,

रूह-ए-मुहब्बत तो अमर है।

 

तेरी आमद का ख्याल लेके ,

फिर सजाया उजड़ा घर है।

 

कभी ख्वाब में कभी ख्याल में,

निराश करता ऐसे गुज़र है।

– विनोद निराश, देहरादून

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