मनोरंजन

मेरी कलम से – मधु शुक्ला

नव सृजन पतझड़ करे संसार में,

भावना उपकार की आधार में।

 

वृक्ष के प्रति जब उदासी व्याप्त है,

व्यस्त तब पतझड़ रहे शृंगार में।

 

जिंदगी की एक सीमा है सखा,

बात यह पतझड़ कहे व्यवहार में।

 

और मौसम हैं नहीं पतझड़ सदृश,

हो जिन्हें विश्वास जग विस्तार में।

 

कर सके विश्राम हर हारा पथिक,

नीति यह पतझड़ रखे आचार में।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

आइने के रूबरू – राधा शैलेन्द्र

newsadmin

होना कोई हानी – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

दादी सुनाए कहानी – सुनील गुप्ता

newsadmin

Leave a Comment