सहन में झाड़ू मारती लड़की
जैसे आसमान बुहार रही हो
जूठे बर्तनों को अजीबो-गरीब कशमश से
रगड़ रगड़ कर यूँ चमचमाती जैसे ख़ुद का भाग्य ,
मा ने गहराई से सोचा कि बेटी को क्यों न स्कूल भेज दूँ
एक प्राणी के एक जून भोजन का बन्दोबस्त तो हो जाय
माँ बेटी को प्यार से स्कूल ले आई सिर्फ़ पापी पेट के लिए
लड़की ने भोजन की थाली में रोटी को बड़े गौर से देखा
और खेलने लगी फिर पूरी रोटी को हथेली पर रक्खा ,
अचानक से उसकी ऑखों में चमक आ गई
यह देख लड़की खिलखिलाई जोर से -अरे वाह !
‘ पृथ्वी मेरी हथेली पर ‘
कि ‘ दुनिया गोल है ‘ बिल्कुल रोटी जैसे
उसने जबरदस्त हौसले से मुट्ठी बन्द किया
फिर दुनिया मेरी मुट्ठी में
वह चौकीं फिर बुदबुदायी ‘ दुनिया मेरी मुट्ठी में ‘
तब तक सारे बच्चे खाना खाकर अपनी थाली
चमका चुके थे लेकिन लड़की ने सिर्फ़
सबक सीख लिया कि ‘पृथ्वी रोटी की तरह गोल है ‘
और ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में ‘
– डॉ भारती सिंह, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश