करते सभी ऋतुराज का स्वागत बड़े उल्लास से,
है प्रीति सबको अत्यधिक संसार में मधुमास से।
बैचैन होता है मनुज जब-जब पडे़ ठंडी अधिक,
बदले दिशा जब सूर्य तब राहत मिले इस त्रास से।
मधुमास में हर्षित कृषक होते फसल को देखकर,
होती सुखद अनुभूति अपने श्रम सफल आभास से।
रंगीन उत्सव फाग से करता हृदय हर प्रेम क्यों,
होता विदा अवसाद जब होता मिलन परिहास से।
सजती सँवरती जब प्रकृति तब गुनगुनाती है धरा,
होता प्रभावित ईश तब सुख शांति की अरदास से।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश