तुम बिन कैसे सुलझाऊँ मैं, मन की उलझन को,
नहीं नियंत्रित रख पाती हूँ, अपनी धड़कन को।
साथ तुम्हारा संबल देता, राह दिखाता है,
हर चिंता से मुक्त रखे यह, खुश रखता मन को।
जीवन साथी प्रीति तुम्हारी, सखी लगे प्यारी,
साथ रहे हर पल महकाये, मेरे जीवन को।
बंधन मन का सबसे पावन, जाना तब हमने,
हाथ गहा जब तुमने मेरा, तजकर कंचन को।
जीवन पथ के खार न चुभते, नेह सुमन पाकर,
दूर रहे हर उलझन, गुंजन, मिलती कंगन को।
— मधु शुक्ला.सतना , मध्यप्रदेश