मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।

लुप्त होती मधुर वाणी व्याकरण का क्या करें ।।

 

डस रही फिल्में हमारे सभ्यता के मान को ।

भूल बैठे पीड़ियों से हम मिले सौपान को ।

अर्थ के अब कूप में डूबी पड़ी संवेदना ,

संस्कृति को ढक रहे इस आवरण का क्या करें ।।

खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।1

 

कुछ पुराकालीनता से मुक्त ज्यादा हो गए ।

सभ्यता में दासता के भाव आकर सो गए ।

वेद की सारी ऋचाये मौन होकर रह गयी ,

देश में वैदिक क्षरण के आचरण का क्या करें ।।

खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।2

 

शादियों में आदमी दिखता अकेला भीड़ में ।

पंख झुलसें शावकों के पत्थरों के नीड में ।

कर्ण भेदन हो रहे हैं कंठ कुंठित वाण से ,

लोक लज्जा नाम के पर्यावरण का क्या करें ।।

खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।3

 

राम रावण के पुजारी एक जैसे आज कल ।

सेतु को करने लगे हैं ध्वस्त ख़ुद ही नील नल ।

लेखनी “हलधर” व्यथित है देखकर हालात को,

द्रोपदी के चीर सड़कों पर  हरण का क्या करें ।।

खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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