खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।
लुप्त होती मधुर वाणी व्याकरण का क्या करें ।।
डस रही फिल्में हमारे सभ्यता के मान को ।
भूल बैठे पीड़ियों से हम मिले सौपान को ।
अर्थ के अब कूप में डूबी पड़ी संवेदना ,
संस्कृति को ढक रहे इस आवरण का क्या करें ।।
खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।1
कुछ पुराकालीनता से मुक्त ज्यादा हो गए ।
सभ्यता में दासता के भाव आकर सो गए ।
वेद की सारी ऋचाये मौन होकर रह गयी ,
देश में वैदिक क्षरण के आचरण का क्या करें ।।
खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।2
शादियों में आदमी दिखता अकेला भीड़ में ।
पंख झुलसें शावकों के पत्थरों के नीड में ।
कर्ण भेदन हो रहे हैं कंठ कुंठित वाण से ,
लोक लज्जा नाम के पर्यावरण का क्या करें ।।
खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।3
राम रावण के पुजारी एक जैसे आज कल ।
सेतु को करने लगे हैं ध्वस्त ख़ुद ही नील नल ।
लेखनी “हलधर” व्यथित है देखकर हालात को,
द्रोपदी के चीर सड़कों पर हरण का क्या करें ।।
खून के रिश्तों में आए संक्रमण का क्या करें ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून