बड़ा बेफिक्र मनमौजी सरस बचपन हमारा था,
पिता माता बिना अपना नहीं होता गुजारा था।
नहीं कोई रही ख्वाहिश न चिंता थी हमें कोई,
मुरादें पूर्ण होतीं थीं पिता माँ का दुलारा था।
गये जब पाठशाला हम हुआ तब ज्ञात अनुशासन,
हमें तब माँ पिता गुरु मित्र इनका साथ प्यारा था।
पढ़ाई पूर्ण करके नौकरी के हेतु भटके हम,
मिला जब लक्ष्य जीवन का हुआ सबसे किनारा था।
जताती हूँ अभी मैं प्यार यादों के झरोखे से,
हमारे पास ‘मधु’ इसके सिवा कुछ भी न चारा था।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश