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प्रणय गीत – अनुराधा पाण्डेय

और गुण कुछ भी न मुझमें,

सत्य है यह, मानती हूँ ।

किन्तु इतना है सुनिश्चित, मैं तुम्हारे हेतु अर्पित ।

ज्ञात मुझको कुछ नहीं है,

जन्म मेरा किस निमित है?

बैठता मुझ पर न अब तक,

सृष्टि का कोई गणित ‌है ।

एक तुमको छोड़ कर प्रिय !

वस्तु कोई है न इच्छित ।

किन्तु इतना है सुनिश्चित, मैं तुम्हारे हेतु अर्पित ।

लब्ध यदि तुमको नहीं है ,

विश्व की संपूर्ण समिधा ।

व्यर्थ वे तुमसे विलग यदि,

हैं जगत में कोटि सुविधा ।

जो तुम्हें क्षण दे न खुशियां,

वे भुवन के शाप गर्हित ।

किन्तु इतना है सुनिश्चित, मैं तुम्हारे हेतु अर्पित ।

— अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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