कृष्ण की नगरी कलेवर अब बदलने लग पड़ी।
पर्व होली का मनाने की निकट आई घड़ी।
माह भर रंगीन तनमन और गलियां भी रहें,
लट्ठ खाने के लिए हुरियार टोली है खड़ी।
रंग में डूबी प्रकृति नव पुष्प चहुँदिशि खिल रहे।
मंजरी से लदे पादप पवन के सँग हिल रहे।
मस्त होकर भीग और भिगो रहे रस रंग में।
नेह के रँग भीग हर दिल अब गले से मिल रहे।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश