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गर्वित आज धरा है – अनिरुद्ध कुमार

हस्तलिखित रेखाओं पर,

जीवन को विश्वास कहाँ है।

कर्म हठी नित गर्जन करते,

कहते की आकाश नया है।

 

पाप पुण्य या छल कपट से,

मन इनका विचलित कहाँ है।

नये स्वप्न से सजा सवेरा,

मह मह करता घर अँगना है।

 

लोकलाज आँखों में झलके,

मर्यादा का पाठ पढ़ा है।

संस्कार जीवन का दर्शन,

बचपन यौवन पाठ पढ़ा है।

 

मेहनत इनकी अपनी खेती,

कर्मठी से कौन बड़ा है।

भाग्य भरोसे कभी न रहते,

देखो गर्वित आज धरा है।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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