नशा एक बिमारी है,
नशा एक महामारी है।
जिसको इसकी लत लग गयी,
उससे सारी दुनिया हारी है ।
मिल जाते हैं अक्सर युवा,
आजकल मैखानों मैं ।
आदत हमने जो देखी है,
आजकल के नौजवानों में ।
लुप्त हो रही संसकृति हमारी,
पाश्चात्य सभ्यता ने पाँव पसारी ।
बच्चॉ के रूदन के आगे,
नशा पड़ रहा है भारी ।
खून पसीना एक कर रहा,
दो वक्त की रोटी की खातिर,
शाम को जब मिलती मजदूरी,
नशे की गिरफ्त में आता फिर ।
घर पर चूल्हा फिर न जला,
फिर पत्नि पर हाथ चला।
बच्चे सोये भूखे-प्यासे,
पिता को देख हो रहें रुआंसे।
युवा मन चंचल होता है,
तुरंत गिरफ्त में आते है।
फिल्मो में जो कुछ भी दिखाते,
वह कुछ सत्य नहीं होता है।
ऐसे फ़िल्मों का हम सब,
मिल कर बहिष्कार करें ,
जो देश के नौजवानों में,
ऐसे निंदनीय संस्कार भरे।
नशा बुद्धि को भ्रष्ट करता है,
नशा नाश की जड़ है ।
नशा उतरते ही हो जाती
गायब सब अकड़ है ।
नशे की आग में झुलस रहा है,
घर का कुलदीपक ,
बोलो फिर कैसे जलेगा,
उसके घर में दीपक।
हम सब को मिल कर ही,
यह कदम उठाना होगा।
देश को नशा मुक्त
फिर से बनाना होगा ।
हम सबको मिलकर ही
करना होगा यह एक काम ।
ताकि नशे के नाम से
मेरा देश न हो बदनाम ।
– शोभा नौटियाल, देहरादून, उत्तराखंड