नगपति खुद जिसका मुकुट बना ,सागर जिसके पग धोता है ।
इतना सुंदर भारत मेरा ,क्यों बीज गरल के बोता है ।।
पहले भी कुछ दीवानों ने ,ऐसे आरोप लगाए थे ।
जो साठ वर्ष तक कुर्सी पर ,काबिज थे मौज उड़ाए थे ।
जब सत्ता में होते दल्ले ,भारत सहिष्णु हो जाता है ,
सत्ता से खारिज होते ही ,क्यों हूक हूक कर रोता है ।।
क्यों बीज गरल के बोता है ।।1
ये पागल पन की बातें है ,जो बोली तूने पड़े पड़े ।
भारत सहिष्णुता का दर्शन,कहते हैं ज्ञानी बड़े बड़े ।
यदि भारत माता हिंसक होती , क्या अन्य नस्ल जिंदा होती,
सदियों से हिन्दू मोमिन ने,हल बैल साथ में जोता है ।।
क्यों बीज गरल के बोता है ।।2
इतिहास झांक कर देख जरा ,अकबर सेना में मान लड़े ।
यह रिस्ता बहुत पुराना है ,टूटे क्या ऐसे खड़े खड़े ।
जिस दिन ये रिस्ता टूटेगा , तब भाग्य मनुज का फूटेगा ,
बाबा कलाम को भूला तू ,क्यों उन्मादों में सोता है ।।
क्यों बीज गरल के बोता है ।।3
अपने परदादों से पूछो , जो खोद गए गहरी खाई ।
आतंकी दानव ने खाई ,पूरी घाटी की अरुणाई ।
यह देश हमारा अनुपम है ,भाषा धर्मों का संगम है ,
तेरे परदादा की करनी को , “हलधर”अब तक ढोता है ।।
क्यों बीज गरल के बोता है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून