मनोरंजन

ग़ज़ल – श्वेता सिंह

ग्रहण बन राहु यूँ आदित्य को कब तक लगाओगे।

हक़ीक़त को छलावों से कहो कब  तक दबाओगे।।

 

समर्थन चाकुओं को दे मिलेंगे ज़ख्म ही तुमको।

बबूलों की सिंचाई कर कभी भी फल न पाओगे।।

 

अँधेरी रात  में  ऐसे  रचोगे  साज़िशें  कितनी।

हमारे घर जलाकर के दिवाली तुम मनाओगे।।

 

बिछाकर  जाल  कहते  हो चुगो  दाने तुम्हारे हैं।

क़फ़स में बुलबुलों को यूँ भला कब तक फँसाओगे।।

 

हमें नादां नहीं समझो पता हैं राज़ सब हमको।

तुम्ही रहजन तुम्ही रहबर हमें कब तक चलाओगे।।

– श्वेता सिंह, बडोरा, गुजरात

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