छोड़ कर मझधार में साजन न जाओ तुम,
प्रिय मिलन के पल मनोहर मत भुलाओ तुम।
भूल जाना है नहीं आसान इतना प्रिय,
जी सकोगे क्या हमारे बिन बताओ तुम।
नव उमंगें चाहतें मन में जगाकर के,
पतझड़ों से प्रेम करना मत सिखाओ तुम।
पास बैठो डर जमाने का तजो मन से,
जो किया वादा उसे हँसकर निभाओ तुम।
लोग तो बातें बनाना जानते हैं बस,
साथ देगा मीत ही उसको हँसाओ तुम।
जब हमें रब ने मिलाया क्यों सहें दूरी,
ईश के उपहार से जीवन सजाओ तुम।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश