मैं ग्रहण लगा हूँ चंदा हूँ ,ऐसे मत मुझे निहारो अब ।
घायल हूँ मैं शर्मिंदा हूँ ,नज़रों से नहीं उतारो अब ।।
नील गगन के गलियारों में ,सारी रात चमकते हो तुम ।
निशा सुंदरी के माथे पर , झूमर बने दमकते हो तुम ।
टूटी रस्सी का फंदा हूँ , मत दो इल्ज़ाम सितारो अब ।।1
नज़रों से नहीं उतारो अब ——
जो भी मेरे लिखा भाग्य में , हर कलंक अपयस सह लूँगा ।
निर्वासित नव ग्रही मंडली ,से बाहर होकर रह लूँगा ।
दागी हूँ काफी गंदा हूँ ,मत मुखड़ा मिरा सँवारो अब ।।2
नज़रों से नहीं उतारो अब ——
कुछ पल चलते साथ डगर में ,आखिर कब तक साथ निभाते ।
राहू केतू कटे समर में ,साथ मुझे चोटिल कर जाते ।
इनके कारण मैं अंधा हूँ ,मत मुझको हीन पुकारो अब ।।3
नज़रों से नहीं उतारो अब —–
गतीमान नभ के पिंडों से , ताकत वापिस ले आऊँगा ।
शिव शंकर के शीश सजूँगा , खोयी आभा फिर पाऊँगा ।
मैं कामदेव का कंधा हूँ ,हलधर ” यह सत्य विचारो अब ।।4
नज़रों से नहीं उतारो अब ——
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून