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गीत – जसवीर सिंह हलधर

मैं ग्रहण लगा हूँ चंदा हूँ ,ऐसे मत मुझे निहारो अब ।

घायल हूँ मैं शर्मिंदा हूँ ,नज़रों से नहीं उतारो अब ।।

 

नील गगन के गलियारों में ,सारी रात चमकते हो तुम ।

निशा सुंदरी के माथे पर , झूमर बने दमकते हो तुम ।

टूटी रस्सी का फंदा हूँ , मत दो इल्ज़ाम सितारो अब ।।1

नज़रों से नहीं उतारो अब ——

 

जो भी मेरे लिखा भाग्य में , हर कलंक अपयस सह लूँगा ।

निर्वासित नव ग्रही मंडली ,से बाहर होकर रह लूँगा ।

दागी हूँ काफी गंदा हूँ ,मत मुखड़ा मिरा सँवारो अब ।।2

नज़रों से नहीं उतारो अब ——

 

कुछ पल चलते साथ डगर में ,आखिर कब तक साथ निभाते ।

राहू केतू कटे समर में ,साथ मुझे चोटिल कर जाते ।

इनके कारण मैं अंधा हूँ ,मत मुझको हीन पुकारो अब ।।3

नज़रों से नहीं उतारो अब —–

 

गतीमान नभ के पिंडों से , ताकत वापिस ले आऊँगा ।

शिव शंकर के शीश सजूँगा , खोयी आभा फिर पाऊँगा ।

मैं कामदेव का कंधा हूँ ,हलधर ” यह सत्य विचारो अब ।।4

नज़रों से नहीं उतारो अब ——

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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