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भारतीय सेना देश के हर संकट के लिए देवदूत – हरी राम यादव

neerajtimes.com – 15 जनवरी को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना अपना सेना दिवस मनाती है। आज से ठीक 75 वर्ष पहले सन् 1949 में  तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल के एम करियप्पा भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ बने थे। उन्होंने भारत के अंतिम ब्रिटिश कमांडर इन चीफ जनरल फ्रांसिस बुचर से कार्यभार संभाला था। सेना के इतिहास में यह वह दिन था जब हमारी सेना के नाम के आगे से पराधीनता का प्रतीक ब्रिटिश शब्द हटा था। इस दिन से हमारी सेना भारतीय सेना कहलायी। इसी गौरवपूर्ण दिन को सेना दिवस घोषित किया गया। बाद में जनरल के एम करियप्पा देश के पहले फील्ड मार्शल बने।

भारतीय सेना का गठन सन् 1776 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता में किया था। तब से लेकर 14 जनवरी 1949 तक यह ब्रिटिश भारतीय सेना कहलायी। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हो गया। लेकिन कुछ कारणों से सेना की कमान जनरल फ्रांसिस बुचर के पास ही रही। 15 जनवरी 1949 को यह हस्तानांतरित हुई।

भारतीय सेना एक स्वैच्छिक सेना है। विश्व के कुछ अन्य देशों की तरह हमारे देश में सेना की सेवा अनिवार्य नहीं है। देश के नौजवान अपनी इच्छा से सेना में भर्ती होते हैं। भारतीय सेना विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना है। इसमें लगभग 42 लाख सैनिक हैं जिसमें सशस्त्र सैनिकों की संख्या लगभग 14 लाख है।  हमारी सेना ने आजादी से पूर्व प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया है और आजादी के बाद 1947, 1965, 1971 और 1999 में चार युद्ध पाकिस्तान के साथ और 1962 में एक युद्ध चीन के साथ लड़ा। 1962 के युद्ध को छोड़कर अब तक हुए युद्धों में हमारी सेना ने अभूतपूर्व विजय हासिल की है। पिछले वर्ष गलवन में हुई झड़प में भारतीय सेना ने चीन को यह बता दिया कि अब वह 1962 की सेना नहीं है।

हमारी सेना का आदर्श वाक्य- सर्विस बिफोर सेल्फ है। भारतीय सेना ने सदा अपने आदर्श वाक्य के अनुरूप ही काम किया है। इसीलिए भारतीय सेना में कार्य करने के लिए सेवा (Service) शब्द का प्रयोग किया जाता है। जबकि देश के अन्य विभागों में काम करने को नौकरी कहा जाता है। हमारी सेना ने युद्ध के अलावा शांति काल में भी देश में बाढ़, भूकम्प जैसी दैवी आपदाओं में भी अपना अमूल्य योगदान दिया है। चाहे वह 26 जनवरी 2001 में गुजरात में आया बिनाशकारी भूकम्प हो या सितंबर 2014 में श्रीनगर में आयी बाढ़, या 16 जून 2013 को केदारनाथ में बादल फटने से मची तबाही हो। सेना देश के हर संकट में देवदूत बनकर खड़ी रही है।

हमारी सेना ने अब तक विश्व के किसी भी देश पर पहले हमला नहीं किया है। केवल जिन देशों ने हमारे ऊपर पहले हमला किया है उन्हीं के ऊपर जबाबी कार्यवाही की है। युद्ध के मैदान में भी भारतीय सेना ने मानवता की मिसाल पेश की है। प्यास से तड़पते सैनिक को अपने हिस्से का पानी पिलाया है। दुश्मन देश के सैनिकों की लावारिश पड़ी लाशों का उनके धर्म के रीति-रिवाज के हिसाब से अंतिम संस्कार किया है। भारतीय सेना दुनिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित सीमा की रक्षा करने वाली पहली सेना है। चाहे सियाचीन का माइनस 20 डिग्री से नीचे का तापमान हो या देश के आंतरिक हालात से निपटने के मौके। भारतीय सेना हर स्थिति में  तत्परता से जुटी रही है।

द्रास अंटार्कटिका के बाद विश्व का दूसरा सबसे  ठंडा स्थान है जहां मुंह से थूक निकलते ही जम जाता है, तो सियाचीन ग्लेशियर समुद्र तल से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुनिया की सबसे ऊंची सीमा है। यहां भी भारतीय सेना के जवान पूरी मुस्तैदी से खड़े हैं।  राजस्थान के बाडमेर और जैसलमेर की खून सुखा देने वाली गर्मी हो या पूरे शरीर में दरार बना देने वाला कच्छ का रण। वहां भी सेना के जवान इन बाधाओं को ललकार रहे हैं।

हमारी सेना के बिभिन्न अनुभागों ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हिमालय की चोटी पर 18 हजार 379 फीट की ऊंचाई पर भारतीय सेना की इंजीनियरिंग कोर द्वारा बनाया गया बेली ब्रिज सेना का परचम लहरा रहा है। यह भारतीय सेना के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची जगह पर पुल बनाने का रिकॉर्ड  है।

भारतीय सेना ने विदेशों में भी अपनी बहादुरी का परचम लहराया है। द्वितीय बिश्व युद्ध के दौरान हमारी सेना की वीरता को सम्मानित करने के लिए 18 विक्टोरिया क्रास प्रदान किया गया था। 1950 से अब तक लगभग 2,00,000 सैन्यकर्मियों ने शांति सेना के अनेक अभियानों में अपना योगदान दिया है। 1950 में शांति सेना की स्थापना के बाद भारतीय सेना ने कोरिया युद्ध के दौरान पहली बार शांति अभियान में अपनी भूमिका निभाई थी । तब से लेकर अब तक हमारी सेना 50 से अधिक सैन्य अभियानों में हिस्सा ले चुकी है ।

भारतीय सेना सही मायने में ‘अनेकता में एकता’ की मिसाल है। इसमें विभिन्न जातियों, धर्मों,  सम्प्रदायों, बोलियों, भाषाओं और राज्यों  के लोग आते हैं। प्रशिक्षण पूरा होते होते सभी एक रंग में रंग जाते हैं। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों में जब एक साथ हजारों सिर ईश्वर की इबादत में झुकते हैं, तो बड़ा मनोरम दृश्य होता है। लोग जाति धर्म के भेदभाव के बिना एक ही मेज पर खाना खाते हैं। कभी आवश्यकता पड़ी तो दो लोग एक कप में चाय भी पी लेते हैं।  त्यौहारों में दक्षिण भारत के लोग पंजाब के भांगड़े पर नाच लेते हैं वहीं गुजरात और पूर्वी भारत के लोग होली में ‘बोल कबीरा सरा ररा’ गाते हैं।

आज हम अपने घरों में इसलिए महफूज हैं कि हमारी  सेना के जवान सरहद की बर्फ से भरी चोटियों, असम और अरूणाचल के घने जंगलों, राजस्थान की झुलसाती गर्मी में खड़े हैं। आज का दिन हमें उन वीर सैनिकों को याद करने का दिन है जो अपनी मातृभूमि के लिए आखिरी सांस तक लड़ते लड़ते कुर्बान हो गये।

एक नागरिक होने के नाते हमारा नैतिक दायित्व है कि हमारे वीर सैनिकों के बलिदान के बाद पीछे उनके जो परिवारीजन है हम उनकी हर तरह से सहायता करें, उनकी देखभाल करें। उन्हें यह महसूस न होने दें कि उनका बेटा नहीं है। अपने परिवारों के प्रति शहीदों के जो दायित्व अधूरे रह गये है उन्हें यथाशक्ति पूरा करने में सहयोग दें ताकि देश का हर नौजवान सेना को अपना भविष्य चुनने के लिए प्रेरित हो। हमारे शहीद और उनके परिवार राष्ट्र की धरोहर हैं। उनके जन्मदिन या बलिदान दिवस पर एक दिया उनके नाम पर जलाएं ताकि उनकी आत्मा स्वर्ग में अपने बलिदान पर गर्व महसूस कर सके।

– हरी राम यादव, {सूबेदार मेजर (आनरेरी)}, अयोध्या , उत्तर प्रदेश  फोन नंबर – 7087815074

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