हिन्दी अपनी भाषा प्यारी, सारे जग में सबसे न्यारी।
संस्कृत की बेटी कहलाती, बहुत लचीली बड़ी सुहाती।
हिन्दी से है पहला नाता, हिन्दी भारत की है माता।
हिन्दी है जन-जन की भाषा, यह भारत की है परिभाषा।
अलंकार छंदों की लड़िया संधि समासों की हैं कड़िया।
शब्दकोश विस्तृत है इसका, लोहा माना सबने जिसका।
हिन्दी पावन गंगा जल सी,मंजुल- मंजुल मधुरिम फल सी।
अद्भुत से उपमान समाये, जो पढ़ता वो ही गुण गाये।
शब्द-शब्द में भाव बड़े हैं, जाने कितने अर्थ जड़े हैं।
अपना भारत अपनी हिन्दी, भारत के माथे की बिंदी।
हम सनातनी भारतवासी, खुश है मथुरा,दिल्ली,काशी।
हिन्दी की तुम पूजा कर लो, शब्द भाव से खुद को भर लो।
हिन्दी में मैं पूजा करती, शुद्ध भाव इसमें मैं गढ़ती।
मा इकलौता शब्द कहा था, बड़ा कर्णप्रिय रस उमड़ा था।
लोरी हिन्दी में सुनती थी, सपने सुन्दर मैं बुनती थी।
हिन्दी मेरे मन की भाषा, पूरी करती है अभिलाषा।
– नीलू मेहरा ,कोलकता, पश्चिम बंगाल