हर चेहरे के पीछे छिपा
एक और चेहरा होता है
और होते है शायद कईं सारे चेहरे
परत दर परत
ऐसे चेहरों को पहचानना
किसी के लिये भी
बहुत मुश्किल होता है,
और उस पर से मुखौटे……!
असली चेहरा
न जाने, कहाँ कौन सा होता है।
चेहरा और चेहरा के पीछे भी चेहरा…..!
चेहरों की आड़ में
मुखौटे के पीछे
आदमी की पहचान
बड़ा कठिन है
अजीब लगता है मुझे
की आदमी होकर भी
हर शक्स
मुकम्मल आदमी नही होता है यहाँ
फिर भी……
इन चेहरों मुखौटों की बेहिसाब भीड़ में
बस एक आरजू है की
कोई तो ऐसा चेहरा दिखे
बिना मुखौटे वाला
जो चुप शान्त
आत्मा की अवाज बोले
जिसकी आंखें पढे
दूसरो के मन की बात
और प्यार की
पारदर्श भाषा में
दूसरो के दिल पर लिखे
खास यादगार इबारत
अपने “आदमी होने के सबूत के तौर पर”
जिसे मैं देखूँ
और उसमें तुम दिखो!
– राधा शैलेन्द्र, भागलपुर, बिहार