हमने तो सादर उन्हें हृदय से अपना लिया,
पर उन्होंने तो हमें, मूर्ख ही ठहरा दिया,
थी हमारी सादगी जो बात हम सुनते रहे,
और हमारे हर्ष पर आघात वे करते रहे।
है बहुत संभव कि तारों को गगन से तोड़ लाएं,
है बहुत संभव शिखर पर जीत का ध्वज गाड़ आएं,
पर जरूरी लक्ष्य पर स्थिर रहे नजरें तुम्हारी,
है जरूरी प्राण पण से कोशिशें होवें तुम्हारी।
– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून