मनोरंजन

विनीत मोहन द्वारा हिंदी अनूदित सॉनेट्स संग्रह है काव्य कादम्बिनी: अनिमा दास

neerajtimes.com कटक (ओड़िशा) – अनुवाद एक ऐसा शिल्प है जिससे केवल सर्जना में नूतनत्व नहीं मिलता, अपितु, एक नवीन जगत में भ्रमण का अवसर भी प्राप्त होता है। नवीन कला एवं भाव सहित उस जगत की जीवन शैली में भी पाठक मन-मस्तिष्क सहित संस्लिष्ट हो जाता है। वह बाह्य जगत से पृथक होते हुए मूल रचयिता के आत्मजगत में संपृक्त हो जाता है।

काव्य कादम्बिनी का आवरण पृष्ठ प्रकृति एवं मानवीय प्रकृति से हमें प्रत्यक्ष रूप से आमंत्रित करता है।  कादम्बिनी अर्थात् मेघ, काव्य के रूप में साहित्य के नीलांबर पर स्तीर्ण हैं। अयन प्रकाशन एवं प्रकाशक संजय  तथा अजेश भार्गव जी के सहयोग से इस संग्रह का पाठकार्पण हो पाया है।

मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत महाविद्यालय में कार्यरत अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापक तथा वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार, उत्कृष्टतम ग़ज़लकार विनीत मोहन औदिच्य के द्वारा हिंदी अनूदित सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी अंग्रेजी साहित्यकारों के अत्यंत सुंदर, सर्वोत्तम सॉनेट्स संग्रह है काव्य कादम्बिनी।

प्रो. विनीत मोहन ने हिंदी साहित्य को सॉनेट विधा से परिचित कराने हेतु अत्यंत धैर्य, निष्ठा एवं रचनात्मक पराकाष्ठा को रखते हुए अंग्रेजी सॉनेट का न ही केवल अनुवाद किया है अपितु, स्वरचित मौलिक सॉनेट का पुष्पगुच्छ भी प्रदान किया है। निरंतर तपस्या के फल स्वरूप हिंदी काव्य मंडल में अंग्रेजी विधा सॉनेट का भी पुनः अवतरण हुआ। यह अति गर्व का विषय है।

आलोचित संग्रह में 135 सॉनेट श्री विनीत मोहन के द्वारा अनूदित हुए हैं। 101 सॉनेटियर के विविध विषय वस्तुओं एवं विविध विचारों पर आधारित 135 सॉनेट हिंदी साहित्य को समृद्ध करते हैं। सॉनेट सर्वप्रथम प्रेम संगीत हुआ करता था परंतु कलक्रम में भिन्न भिन्न विषयों पर भी लिखे गए सॉनेट पाठकों को रुचिकर लगने लगे एवं बहुल भाषा में आदृत होने लगे।

विनीत मोहन ने प्रत्येक सॉनेटियर का परिचय देते हुए उनके सॉनेट का अनुवाद किया है। विशेष रूप से उन सॉनेट रचनाकारों की लेखनी को आत्मसात करना उनके लिए कष्टसाध्य तो रहा परंतु नव्य अनुभूति से विह्वल होकर अनुवादक ने जो कृति हम पाठकों को दी है वह चिर स्मरणीय है।

विनीत मोहन के अनुवाद शिल्प से यह प्रतीत होता है कि उनकी लेखनी ने मूल रचयिता की काया में प्रवेश करते हुए चिंतन एवं मंथन को अपनाया है। उदाहरण स्वरूप, प्रथम सॉनेट गिया कोमो दा लेंटीनी ‘मैंने धूप के दिनों में बारिश होते देखी ‘ देखें, तृतीय छंद :-

“फिर भी प्रेम की देखी हैं मैंने कई बातें विचित्र

जिसने भर दिए हैं मेरे घाव, नए घाव देकर

उसने बुझा दी है पूर्व में मेरी आंतरिक अग्नि।”

इस छंद में लौकिक भाव से आलौकिक भाव पर्यंत का प्रसारण अभिभूत करता है। मूल रचयिता की विचारधारा को आत्मीयता देते हुए अनुवादक ने अति सरल भाषात्मक छेनी से पाठक के मन में संपूर्ण सॉनेट की आत्मा को उकेर दिया है।

द्वितीय उदाहरण :- सॉनेट 47 मैथिल्डे ब्लाइंड – मृतक (द डैड)

संपूर्ण सॉनेट हमें सत्य से परिचित तो कराता ही है साथ में यह इस पार्थिव इच्छाओं से मुक्त होने की संभावनाओं से भी अवगत कराता है। इस सॉनेट का द्वितीय छंद देखें,

“साँच हैं हमारे नश्वर शरीर

जिनमें उनकी सशक्त अमर इच्छा—

नश्वरता की गहन कामना की पूर्ति के लिए —

अनकहे सुस्त समय से होकर – हो गई है अशरीरी..”

वाह! अत्यंत सुन्दर अनुवाद। यह काया-प्रवेश करना .. आत्मलीन होना वास्तव में कितना अद्भुत है!!

अमेरिका के वातावरण में श्वास लेता जीवन कितने संघर्षो में व्यतीत होता है.. यह अभिव्यक्त करते हुए सॉनेटियर क्लोड मैक ने ‘अमेरिका’ सॉनेट में जिस प्रकार शब्द कल्प का प्रयोग किया है ठीक उसी प्रकार अनुवादक ने भी छाया कल्प सृजित किया है।

गहन दृष्टि से अवलोकन करते हुए शेक्सपियर के सॉनेट (द एक्सपेंस ऑफ़ स्पिरिट ) आत्मा का विस्तार पर मैं स्थिर हो गया। वैसे तो शेक्सपियर के पाँच प्रभावी सॉनेट का अनुवाद किया है कवि विनीत मोहन ने किंतु मृत्यु पर इस रचना ने बहुत ही प्रभावित किया मुझे, जिसके तृतीय छंद पर मैं प्रकाश डालूँगी …

अनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्त

पाकर, पाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमा

प्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूति, लाती व्यथा हो कर प्रदत्त

पूर्व में संभावित आनंद, समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा। ”

शेक्सपियर के इस सॉनेट के निहित अर्थ को परिभाषित करते हुए इस पद्यांश में कवि ने मनुष्य की काम-वासना को एक उन्मत्त चिंताधारा माना है, जिसमें देह की तृप्ति को अनंत तृष्णा एवं असमाप्त स्वप्न सम माना है। समाज को यह संदेश देते हुए कवि ने दैहिक तृषा को अस्थायी एवं नरक का क्षणिक आनंद कहा, परंतु आत्मा के विस्तार में परमात्मा की तृषा को स्थान देते हुए स्वर्गीय आंनद को महत्व दिया है। कवि विनीत मोहन ने अति निश्चल भाव एवं उत्कृष्ट शैली से उच्च स्तरीय भावनाओं को अभिव्यक्त किया है।

विश्व प्रसिद्ध प्रकृति कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी रचनाओं में सदा प्रकृति को गुरु माना है अर्थात प्रकृति हमें सहज सरल जीवन की कई मूल्यवान शिक्षा देती है। उनके सॉनेट (द वर्ल्ड इज़ टू मच विथ अस ) विश्व से अत्यधिक है हमारी आसक्ति  के प्रथम छंद में,

‘देरी या शीघ्रता से इस संसार में हैं हम घोर लिप्त

नष्ट करते रहे हैं शक्ति खोने -पाने के सोपानों में

प्रकृति को करते रहे अनदेखा अवांछित वरदानों में

हमने कर लिया स्वयं को घिनौनी वासनाओं से तृप्त।’

कवि ने प्रकृति के प्रति स्वार्थी मनुष्य के क्रूर आचरण के संदर्भ में कहा है, अपनी असीमित महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु प्रकृति के प्रति हो रहे अत्याचर का घोर विरोध करते हुए इन पंक्तियों में अपनी भावनाओं को सार्थक अर्थ दिया गया है, एवं इसी भाव को अनूदित करते हुए कवि विनीत मोहन ने बहुत सुंदर शैली में अभिव्यक्त किया है।

वैसे ही ई. ई. कमिंग्स के सॉनेट ‘मत करो दया इस व्यस्त, राक्षस, निर्दय मनुष्य पर’ में मनुष्यता को भूलते मनुष्य को एक चेतावनी दी है। आधुनिकता एवं अविष्कार की बहुलता में मत्त मनुष्य जीवन मूल्य को भूल कर राक्षस रूप में परिवर्तित हो चुका है। स्वार्थ कवलित मनुष्य कैसे निर्दयी बन समग्र ब्रह्माण्ड को असुरक्षित कर देता है… यह प्रतिपादित किया है कमिंग्स ने एवं इसका सुन्दर भावनुवाद किया है अनुवादक विनीत मोहन ने।

ऐसे ही समस्त सॉनेट विभिन्न विषयों पर आधारित हैं। उपयुक्त उपमाएँ, बिंब, प्रतिफलित होता छाया दृश्य, रहस्यघन शब्द कल्प आदि का भारतीय भाषा साहित्य में रूपांतरण वास्तव में प्रशंसनीय है।

अनुवादक ने यथार्थ एवं सार्थक अभिव्यक्ति के सॉनेट का चयन भी किया है। प्रेम, परीक्षा, युद्ध, विराम, सामाजिक, आत्मिक, संघर्ष, मृत्यु इत्यादि विषयों से आगे बढ़कर एक ऐसा सॉनेट भी पृष्ठबद्ध है जिसका अनुवाद कर सॉनेटियर विनीत मोहन ने न्याय किया है, वह सॉनेट है टेरेन्स हाइन्स के ‘बट देयर नैवर वाज ए ब्लैक मेन्स हिस्टीरिया’ ( किंतु वहाँ कभी नहीं था अश्वेत पुरुष का भावोन्माद)।

पाश्चात्य परंपरा व संस्कृति, हमारे देश की चिन्ताधाराओं से नितांत भिन्न है। उनके साहित्य एवं कला में विशिष्ट भिन्नता एवं एक स्वाद भी है किंतु कवि  विनीत इस संकलन के समस्त सॉनेट में वह पारदर्शिता रखने की प्रचेष्टा में पूर्ण रूप से सफल भी हुये हैं। उन्होंने पाश्चात्य विधा सॉनेट एवं रचनाकारों के दार्शनिक तर्कों को, आध्यात्मिक चिंतन को एवं लेखनी की विविधता को अति कौशलपूर्वक एवं स्वयं की अंतर्ध्वनि से अभिसिंचित कर एक काव्यिक प्रवाह को पाठकों के समीप पंहुचाया है। इन अनूदित सॉनेट्स में उनकी कठोर साधना एवं साहित्य प्रति समर्पण दृश्यमान होता है।

एक साहित्य साधक सर्वदा तपस्यारत ऋषि सम साधना करता रहता है। अनुवाद कार्य में न्याय एवं निष्ठा का संगम ही कहता है सफल अनुवाद की यात्रा एवं अनुवादक की हृदयगाथा। श्री विनीत मोहन जी ने अपने मौलिक भावों का स्वातंत्र्य रखते हुए निष्ठा सहित अपना कार्य किया है।

इस रसपूर्ण साहित्यिक अनुवाद का यदि ध्यान से आहरण किया जाए तो प्रत्येक पीढ़ी के पाठकों को अंग्रेजी एवं हिंदी साहित्य का एक विस्तार क्षेत्र मिलेगा जहाँ दीर्घ काल तक कवि विनीत मोहन के उच्च स्तरीय अनुवाद की रश्मियाँ चमकती हुई मिलेंगी।

काव्य कादम्बिनी, साहित्यिक दृष्टिकोण से पूर्णतः सफल कार्य है। सभी पीढ़ी के पाठक वर्ग इस विशेष संग्रह का निश्चित रूप से आनंद लेंगे । यह संग्रह अति उत्कृष्ट अनुवाद का स्वतंत्र एवं श्रेष्ठ उदाहरण है।

पुस्तक समीक्षा-

पुस्तक का नाम – काव्य कादम्बिनी (आंग्ल भाषा से हिंदी में अनूदित सार्वकालिक श्रेष्ठ सॉनेट -संग्रह )

संस्करण – प्रथम संस्करण

प्रकाशक – अयन प्रकाशन, न्यू दिल्ली

पृष्ठ संख्या – 160

मूल्य – रुपये – 400

अनुवादक – प्रो. विनीत मोहन औदिच्य

समीक्षक – अनिमा दास (वरिष्ठ कवयित्री एवं सानेटियर)  कटक, ओड़िशा

Related posts

यह तुमने क्या किया – गुरुदीन वर्मा

newsadmin

साक्षरता का अधिकार है – राजेश कुमार झा

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment