भोर सुनहरी सिंदूरी सांझे,
तुझे विस्मृत बिम्ब
मैं समर्पण कर दूं…!
गीत लिखूँ
थोड़ी प्रीत लिखूँ,
छंद सलोने
मैं अर्पण कर दूं…!
जीवन की
गोधूल डगर से
तुम चुनो खिले
अधखिले सुमन,,
प्रभु से लूं
आशीष तनिक सा,
जीवन को
मैं दर्पण कर दूं…!
सपने
चाहत और उमंगे
जो सूख गईं
बंजर मन में,
तू आ
मिल मुझसे,
फिर तेजोमय
मैं घर्षण कर दूं..!
प्यास
घुटन और
मन का सूनापन,
तुझसे कोसों दूर रहे,,
मेघों से
ले लूं बरसातें,
वो तुझपे
मैं वर्षण कर दूं…!
– राजू_उपाध्याय, एटा, उत्तर प्रदेश