हद से ज्यादा ठीक नहीं है खातिरदारी मज़हब की ।
आग लगा देगी भारत में ये चिंगारी मज़हब की ।
गर विस्वास नहीं हो मेरा हाल सीरिया का देखो ,
अच्छा खासा मुल्क निगल गयी मारामारी मज़हब की ।
भारत भी अब नहीं अछूता इस घातक बीमारी से ,
राजनीति का खेल बनी है पहरेदारी मज़हब की ।
यदि भगवान एक ही है तो अलग दुकानें क्यों खोली ,
मस्ज़िद मंदिर में होती है ठेकेदारी मज़हब की ।
यह उन्माद नहीं कुचला तो भारत फिर बट जाएगा ,
देश हमारा ले डूबेगी यह एय्यारी मज़हब की ।
अनपढ़ कौम बनी है मोहरा राजनीति की चौसर पर ,
कुछ दल लेकर बैठ गए तेग ,कटारी मज़हब की ।
हिन्दू बने तमाशा देखों खुद अपनी ही धरती पर ,
सड़कों पर प्रदर्शन में दिखती मक्कारी मज़हब की ।
भाई चारा गिरबी रखकर क्या सरकार चलाओगे ,
अभी बक्त है यहीं कुचल दो पैरोकारी मज़हब की ।
बात नहीं मानी” हलधर” की तो पक्का पछताओगे ,
सारा मुल्क सटक जाएगी ये बीमारी मज़हब की ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून