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नववर्ष – प्रदीप सहारे

नववर्ष की,

पहली भोर ।

प्रकृति को घेरकर ,

छाई हुई दिखी शबनम,

गुलाब की पंखुडी पर,

छोटी छोटी बूंदे ,

पराग के संग ,

रही थी घुल मिल ,

भ्रमर छेड़ने की कोशिश,

करता बार बार ,

पराग संग,

रस पान करने बेकरार ,

हवा के झोंके से,

सब बेकार ,

सूरज की कोमल किरणें,

पड़ी बूंदों पर ,

चमक उठी,

नवयौवना की तरह ,

भ्रमर जो देखता दूर से,

धिरे धिरे सूरज की किरणें,

भरने लगी दम,

बस, उसी के साथ,

शबनम हो गई खतम ।

मुबारक हो आपको

उम्मिद, उत्साह, उमंग,

आशाओं  से भरा,

नववर्ष का  जीवन ।

✍प्रदीप सहारे, नागपुर , महारष्ट्र

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