गैर से मिलना मिलाना सीख लो।
मन की चाहत अब दबाना सीख लो।
हाय अब फिर लौट आ बचपन मिरे।
यादे बचपन की भुलाना सीख लो।
भूल जा गैरो की छलनी बात को।
ख्याब अपना खुद सजाना सीख लो।
एक तुम हो जिंदगी मे आज तो।
प्यार यारा अब निभाना सीख लो।
आ रही थी लब पे उल्फत की लहर।
प्यार मे अब खिलखिलाना सीख लो।
रूठ बैठे हो अजी तुम यार क्यो?
हाय अब तो तुम मनाना सीख लो।
कर रहे बाते बड़ी तुम आजकल।
यार को अब आजमाना सीख लो।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली चण्डीगढ़