पूछ रही है धड़कन मेरी,
कब समझोगे उलझन मेरी।
स्वप्न सलोना मैंने देखा,
चूड़ी खनके खनखन मेरी।
गूँज रही शहनाई मन में,
बाँह पकड़ लो साजन मेरी।
समझो जब तुम व्यथा हमारी,
प्रीत बनेगी दुल्हन मेरी।
जब बरसेगा नेह तुम्हारा,
काया होगी कंचन मेरी।
छोड़ झमेले जग के सारे,
आन बसो अब अँखियन मेरी ।
अपलक देखूँ तुम्हें सदा मैं,
चाह रही ‘मधु’ चितवन मेरी।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश