चंद लोगो के कथन से लहकता है राजपथ ।
मज़हबी चिंगारियों से दहकता है राजपथ ।
राक्षसी वातावरण है देश का ख़ुद देख लो ,
खून खद्दर में छुपाकर चहकता है राजपथ ।
लाज़ अबला की लुटी फिर मोमबत्ती जल उठी ,
मौत पर दो शब्द कहकर दुबकता है राजपथ ।
चित्र नकली मित्र नकली पित्र नकली हो गए ,
इत्र गांधी का लगाकर महकता है राजपथ ।
शोर से संसद घिरी संवाद सच से दूर है ,
प्रश्न पर अंगार सा क्यों भभकता है राजपथ ।
रोग का उपचार केवल नागरिक कानून में ,
मौन साधे राह से क्यों बहकता है राजपथ ।
खेत में हल्कू मरा तो मौन व्रत धारे रहा ,
अब पुराली जल रही तो धधकता है राजपथ ।
नाम “हलधर” का लिखा है बागियों की सूची में ,
सामना सच से हुआ तो मचलता है राजपथ ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून