मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

इस ज़िंदगी ने ऐसे  छले हैं ,

हाथ खाली कई बार मले है।

 

जो वफ़ा न निभा सके कभी,

संगेदिल वही  हमसे भले हैं।

 

कई बार दाँव खेला प्यार का,

पर हारे हुए जुआरी से चले हैं।

 

कब से उदास थी मन बगिया,

आज आशा के फूल खिले हैं।

 

वो याद करे न करे अब हमें,

कल ख्वाब में  नैन मिले है।

 

जब भी ख्याल आया उनका ,

सूनी आंखों में सपने पले हैं।

 

याद आये वो ऐसे मुझे निराश,

जैसे अन्तर्मन के दीप जले है।

– विनोद निराश , देहरादून

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