neerajtimes.com – उम्र की सांझ हो चुकी है। लेकिन जब भी यह गुलमोहर के फूल खिलते हैं ,जाने क्यों मन पिछली यादों में चला जाता है। आज भी याद है मुझे अपना सोलवा बसंत। जब धरा पर गुलमोहर के फूल खिलते है। प्रकृति अपना सौंदर्य बिखेरती है। पहली बार मैंने तुम्हे इस बेंच पे बैठे देखा था। मेरे जीवन में पहली बार तुमने ही प्रेम की दस्तक दी थी जिससे मैं परिपूर्ण हो गई थी। आज भी याद है मुझे वह दिन । मेरे कमरे की खिड़की उसी बेंच की तरफ खुलती थी और यह फूलों का नजारा देखती थी तुम वहां पर आकर बैठे थे। हम कितने दिनों तक एक दूसरे को देखते रहे। बात मुस्कुराने से आगे बढ़ी और जाने कब प्रेम बंधन में बंध गई । जिसके साक्षी ये गुलमोहर के फूल बने। आज तुम नहीं हो दूर चले गए हो मुझसे, लेकिन अब भी एक बार मिलने की इच्छा है। एक बार तुम्हे मैं देखना चाहती हूं। लौट आओ एक बार, सिर्फ एक बार। – झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड