यारा इस जीवन मे गम भी आतें हैं।
खुशियों को गम से हम दूर भगाते हैं।
बिक जाता है अब तो ईमां देखो तो।
सच कहने से हम सब क्यो कतराते हैं।
आँखे तुम्हारी अब देखे सपने पर।
बातें सजना की हमको रूलाते हैं।
रस्मो रिवाजों मे बंधा हर बन्दा।
बाते कड़वी वो सबको चुभाते है।
सहचर जी जीते हैं अब तो ख्यालों में
वो सच्चाई लिखने से कतराते है।
झोली भरता है सबकी वो हँस हँस कर।
हाथो पे अपने वो रब नचवाते हैं।
कष्टों से डर कर तू कैसे जिये ऋतु।
मेहनत के बल पर दुनिया को बसाते हैं।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली चंडीगढ़