रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।
तब अँधेरों ने हमें धोखा दिया है ।।
हर तरफ ही धूल की चादर चढ़ी है ।
राह मंजिल रोककर ख़ुद ही खड़ी है ।
आज भी भटके हुए से काफ़िले हैं ,
पाँव ने कब नाम थकने का लिया है ।।
रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।1
रात ने ओढा अनोखा आवरण है ।
चाँदनी का आज कैसा आचरण है ।
जुगनुओं के आसरे बैठा रहा हूँ ,
घूँट भर भर रात मैने विष पिया है ।।
रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।2
सोच छोटी नाम से दिखते बड़े हैं ।
पास उनके आज नकली आंकड़े है ।
बस गरीबी मिट रही है भाषणों में ,
बात सच्ची बोलने से मुँह सिया है ।।
रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।3
बुझ गयी है लालसा सी जिंदगी की ।
स्वच्छता दासी बनी अब गंदगी की ।
दाव पर है साख सच्चे हौसलों की ,
कर्ज़ में “हलधर”बता कैसे जिया है ।।
रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून