चार दिन को जाइये फिर से प्रकृति की गोद में।
दिल जरा बहलाइये फिर से प्रकृति की गोद में।
एक नवजीवन मिले हो शांत अंतर्मन पुनः,
लौट वापस आइये फिर से प्रकृति की गोद में।
आखिर कौन –
अगर पीर की बातें सारे लोग करेंगे,
नेह दया की बातें तब फिर कौन करेगा।
कष्ट बहुत से पग-पग बिखरे हैं,
उन्हें भूलने खातिर मलहम कौन रखेगा।
जीवन मे होते प्रतिदिन संघर्ष बड़े,
इन्हें शमन करने की बातें भी करिये,
शोर भरी दुनिया में व्याकुल जब सारे,
सन्नाटों की आवाजें अब कौन सुनेगा।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश