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दोहा – अनिरूद्ध कुमार

कैसी है यह जिंदगी, हर पल बदले रंग।

भावों के सुरताल पर, सुंदर इसका ढंग।

 

आकुलता में अनमना, आतुरता में संग।

परिलक्षित सदभावना, मन मोहे सारंग।।

 

हृदय उठे संवेदना, जीवन रहता दंग।

हाव-भाव सुरताल पे, झूमें बनें मलंग।।

 

सुख-दुख की सरिता बहे, रहती सदा उतंग।

काया में माया बसे, निस दिन नयी तरंग।।

 

आना जाना रोज है, मानो कोई जंग।

आँख पसारे सोंचते, देखो उड़ी पतंग।।

– अनिरूद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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