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सादगी – मधु शुक्ला

सादगी से जिंदगी जो जी रहे संसार में,

वे करें विश्वास पावन कर्म के विस्तार में।

 

रूप पोषाकें लुभा सकतीं नहीं हर एक को,

ढूँढ़ते हैं लोग कुछ सौंदर्य को व्यवहार में।

 

धन सभी रिश्ते सहजता से निभा सकता नहीं,

प्रेम  होता  सर्वदा  संबंध  के  आधार  में।

 

स्वार्थ से सज्जित जगत में पूछ धन की है अधिक,

लोकप्रिय  है  सादगी  ही  किन्तु  लोकाचार  में।

 

रूप दौलत ज्ञान को गौरव दिलाती सादगी ,

जी रहा है आदमी क्यों फिर अहं के भार में।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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