प्रीत का सागर मनोहर फाग हूँ मैं,
माँ, पिता की जिंदगी का राग हूँ मैं।
छाँव से अपनी हृदय जो तृप्त कर दे,
नेह से पोषित सलोना बाग हूँ मैं ।
जिंदगी को स्वच्छ पावन रख रहा जो,
मन समुदंर का उफनता झाग हूँ मैं ।
कर रहा कर्तव्य पूरे साधनों बिन,
लोक निंदा से घिरा बेदाग हूँ मैं।
झूठ से यारी नहीं ‘मधु’ ने निभायी,
बोलती सच इसलिए ही काग हूँ मैं।
— मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश .