घरवा आजा पिया पलटनिया ,लागल धान के कटनिया !
फोनवा करेली गोरी धनिया, दूर करा परशानियां!
ठिठुरेला जोर जाड़ा , भोरवा जाइ कईसे बहरा !
थर थर कांपे देहिया , तनको चिंता नईखे तोहरा!
कई के कटनिया जाइ कईसे खरीहनिया !
फोनवा करेली गोरी धनिया……..!
गउआ में सभ कर पिया धान कटी गईले !
काटी पिटी कुटी धान चाउर बनी गईले !
धनवा के काटी काटी टूटे मोर बदनीया !
फोनवा करेली गोरी धनिया……!
देवरा रहेला हरदम मोबाइले में बिजी!
हम ना जाइब खेतवा कहेली ननदो हमरा से खिझी!
करा केवनो जतनिया पिया आके दिखावा आपन मरदनीया !
फोनवा करेली गोरी धनिया ……!
कटाई नाहीं धनवा त गेहूं कब बोवाई !
तोहरे बिना पिया कईसे खेतवा जोताई!
कहवा से लाई बिया पिया कईसे पटाई पनिया !
फोनवा करेली गोरी धनिया लागल धान के कटनिया!
– श्याम कुँवर भारती (राजभर ), बोकारो झारखंड