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दुषित कार्मिक सम्बन्धों की समाप्ति द्वारा स्वर्णिम युग की स्थापना – मुकेश मोदी

neerajtimes.com – अनन्तकाल से संसार में अनेक मनुष्यात्माओं का आना जाना चला आ रहा है । साकार मनुष्यलोक में आते ही हमारा अन्य आत्माओं से सम्बन्ध जुड़ जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो आत्म उन्नति द्वारा जीवन यात्रा को सुगम बनाने हेतु सहयोग करने के लिए आत्माओं का एक दूसरे से जुड़ना पूर्व जन्म में ही तय हो जाता है ।

पूर्व जन्मों में स्थापित हुए कार्मिक सम्बन्धों का प्रभाव ही दो आत्माओं के बीच आकर्षण उत्पन्न कर उन्हें भावनात्मक रूप से एक दूसरे के निकट लाता है जिसके नैपथ्य में दोनों के अर्न्तमन में यही कल्पना पनपती है कि साथ रहकर आपसी सहयोग से हमारा जीवन सुखी हो जाएगा। किन्तु कुछ ही समय बाद दुखों व परेशानियों अनुभव होने पर दोनों ही मनुष्यात्माओं को सम्बन्ध जोड़ने की भूल का एहसास होने लगता है ।

कार्मिक हिसाब किताब बहुत ही पेचीदे और जटिल होते हैं, जिन्हें समझ पाना इतना सरल नहीं होता। प्रत्येक जन्म में पांच विकारों के वशीभूत होकर हम अपने सम्बन्धियों को दुखी कर खुद पर विषाक्त कर्मों का बोझ चढ़ा लेते हैं। अगले जन्म में उन विषाक्त कर्मों के बोझ से मुक्त होने के लिए उन्हीं आत्माओं के साथ हमारा सम्बन्ध स्वतः ही जुड़ जाता है। लेकिन सुप्त आध्यात्मिक चेतना के कारण इस बोझ को उतार पाने में हम निष्फल हो जाते हैं । परिणामस्वरूप सम्बन्धों में खट्टेपन व कड़वाहट का एहसास दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है ।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कार्मिक हिसाब किताब शून्य किए जाने के लिए दो आत्माओं के बीच सम्बन्ध स्थापित होता है, जबकि दोनों पक्ष अपने सुख, स्वार्थ, लाभ और मोह रूपी दुषित वृत्तियों के वश होकर एक दूसरे के प्रति इस भ्रम में आकर्षित होते हैं कि यह उनका आत्मिक प्यार है। वास्तविकता यह है कि आत्मिक सम्बन्ध कभी भी दुषित नहीं होता और ना ही जीवन को दुखी व नीरस बनाता है। आत्मिक सम्बन्ध सदा पवित्रता, त्याग और निस्वार्थ स्नेह के स्तम्भों पर खड़ा होता है ।

कार्मिक सम्बन्धों के प्रति वासनायुक्त आकर्षण के कारण कभी-कभी हमें अल्पकालिक सुख का अनुभव होता है, लेकिन हमारी भौतिक इच्छा, वासना और भोगवृत्ति की तृप्ति ना होने पर असहनीय मानसिक पीड़ा का एहसास भी होता है। कभी-कभी सम्बन्धों की मधुरता हमारी गलतियों के कारण ही कड़वेपन से बदलकर विष तुल्य हो जाती है । परिणामस्वरूप अपने ही सम्बन्धों के प्रति हम घोर निराशा का अनुभव करते हैं ।

पिछले जन्मों से चले आ रहे विकर्मों के बोझ से मुक्त होने में मदद करने के लिए मनुष्यात्माएं हमारे साथ कार्मिक सम्बन्धों में आती है। हमारा प्रत्येक लौकिक सम्बन्ध कर्मों के किसी न किसी हिसाब को चुकाने के लिए ही बनता है। लेकिन ऐसे कार्मिक सम्बन्धों की पहचान करना बहुत कठिन है। इसके लिए हमें अपने विचारों और भावनाओं को गहराई से समझना होगा ।

किसी व्यक्ति के सम्बन्ध सम्पर्क में आए बिना या उसके व्यवहार और भावनाओं से जुड़े बिना हमारे निजी जीवन में कोई विशेष उतार चढ़ाव नहीं आता । कार्मिक सम्बन्धों का प्रभाव ही हमारे विचारों और भावनाओं को कभी उग्र और कभी शान्त बनाता है। कार्मिक सम्बन्धों से प्रभावित होकर उत्पन्न हुई प्रतिकूल परिस्थितियां हमें नीरसता का एहसास कराती हैं और परिस्थितियों की अनुकूलता जीवन का प्रत्येक क्षण हमें अद्भुत और सुखमय अनुभव कराती है ।

कभी कभी हम अपने लौकिक सम्बन्धों को अप्रिय बन्धन जैसा अनुभव करते है, लेकिन चाहकर भी उनसे स्वतन्त्र नहीं हो पाते हैं। ऐसे सम्बन्धों में हम अक्सर उन्हीं अप्रिय परिस्थितियों का अनुभव करते हैं जो हमने पिछले जन्मों में औरों को अनुभव कराई थी, किन्तु आध्यात्मिकता का अभाव हमें इस सच्चाई का एहसास नहीं होने देता।

ऐसा कोई भी सम्बन्ध जो हमारे जीवन को अशान्त, अव्यवस्थित और दुविधापूर्ण बनाता है तो हमें समझना चाहिए कि निश्चित रूप से यह एक दुषित और कठोर कार्मिक सम्बन्ध है। याद रखें कि ऐसा हर कार्मिक सम्बन्ध हमें अपने कर्मों के प्रति सावधान करते हुए महत्वपूर्ण सबक सिखाने के लिए ही स्थापित होता है।चूंकि परिस्थितियों की प्रतिकूलता हमें अप्रिय लगती है, इसलिए इन स्थापित सम्बन्धों से कोई शिक्षा लेने के बजाए हम अज्ञानतावश उनसे छुटकारा पाने के लिए छटपटाने लगते हैं।

जिस प्रकार हर चीज का कोई मोल होता है, उसी प्रकार विषाक्त कार्मिक सम्बन्धों से मुक्ति का भी कुछ मोल चुकाना पड़ता है। इसी कीमत को ना चुकाने की मूर्खता के कारण प्रत्येक लौकिक सम्बन्ध कड़वाहट के चरम तक पहुंचकर मानसिक रूप से हमें निर्बल बना देता है और हम आत्मिक सुकून की तलाश में बाहरी दुनिया में भटकने लगते हैं। फलस्वरूप हमारा जीवन चरित्र इतना बिगड़ जाता है जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। कार्मिक सम्बन्धों की जटिलताओं के कारण जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव, निराशाजनक और प्रतिकूल परिस्थितियां हमें मानसिक रूप से थका देती है जिससे हमारी आत्मिक उर्जा धीरे धीरे क्षीण होने लगती है । हमारी दिनचर्या में कई ऐसी बुरी आदतें शामिल हो जाती है जो हमारे व्यक्तिगत और पारिवारिक भविष्य के लिए घातक होती है, जिनका दुष्परिणाम सामने देखकर दिन-प्रतिदिन पश्चाताप का एहसास हमें आन्तरिक रूप से खोखला करने लगता है ।

हमें पंच तत्वों का शरीर जीवन जीने के लिए मिला है जिसे हमने बिना किसी आपत्ति के स्वीकार किया है, लेकिन लौकिक सम्बन्धों के स्तर पर हम अनेक आपत्तियां उजागर करने लगते हैं। चिन्तन का विषय है कि यदि हमें शरीर नहीं मिलता तो जीवन कैसे जीते और यदि लौकिक सम्बन्ध नहीं बनते तो जीवन रूपी खेल किसके साथ खेलना सीखते? इसलिए जीवन में प्रत्येक सम्बन्ध का उतना ही महत्व है जितना हमारी नश्वर देह का महत्व है ।

प्रत्येक लौकिक सम्बन्ध स्थापित होने का कारण व महत्व गहराई से समझने के लिए स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि मेरे जीवन में इन सम्बन्धों की स्थापना क्यों हुई है ? क्या मुझे इन सम्बन्धों की क्या आवश्यकता है ? क्या इन सम्बन्धों के बिना मैं सुखी जीवन की कल्पना साकार कर सकता हूँ ?

इन समस्त प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए जब हम अपने ही अन्तर्मन की गहराई में उतरेंगे तो एहसास होगा कि प्रत्येक सम्बन्ध हमारे जीवन को बेहतर बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए स्थापित हुआ है। जीवन के प्रत्येक मोड़ पर इन सम्बन्धों के माध्यम से प्राप्त प्रशिक्षण ही हर समस्या से मुक्ति दिलाकर जीवन को सफल बनाने के लिए सहयोगी साबित होगा। इसलिए हमें अप्रिय लगने वाले सम्बन्धों से छुटकारा पाने के बजाए उसका महत्व समझकर जीवन पर्यन्त उससे कुछ न कुछ सीखने की प्रेरणा मन में जागृत रखनी चाहिए ।

कई बार हम अपने लौकिक सम्बन्धों के प्रति आवश्यकता से अधिक निर्भर होकर उनके मोहजाल में फंस जाते हैं । हमारे भीतर यह मनोभ्रम पलने लगता है कि जीवन पर्यन्त ये सम्बन्ध कायम रहकर हमें मानसिक सुकून व सुरक्षा देते रहेंगे । जिस प्रकार धुम्रपान अथवा शराब का सेवन व्यसन की श्रेणी में आते हैं, उसी प्रकार सम्बन्धों के प्रति अतिनिर्भरता भी एक व्यसन है। मृत्यु घटित होने पर ऐसे व्यसनी सम्बन्ध टूटकर जीवन को अत्यन्त ही दयनीय बना देते हैं, क्योंकि स्थाई रूप से बिछड़ने का असहनीय दर्द हमें मनोरोगी तक बना सकता है ।

हमें इस तथ्य को गहराई से समझना होगा कि प्रत्येक सम्बन्ध पूर्व जन्मों के कार्मिक हिसाब को शून्य कर उन्हें सुन्दर आत्मिक स्वरूप देेने के लिए स्थापित होता है। जब तक हम यह सबक नहीं सीखेंगे, तब तक हम जन्म-दर-जन्म अपने सम्बन्धों को जटिल बनाकर दुखों के भंवर में फंसते ही जाएंगे । कोई यह भी कह सकता है कि मिलना-बिछड़ना, सुख-दुख का आना जाना ही तो जीवन है। फिर हमें हमारे जीवन में स्थापित सम्बन्धों के प्रति इस प्रकार की सजगता क्यों रखनी चाहिए ?

ऐसी विचारधारा वाले लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ रहते हैं कि जन्म-दर-जन्म कार्मिक सम्बन्धों में जटिलता बढ़ने के कारण मन में उत्पन्न होने वाले नकारात्मक, अशुद्ध और विषाक्त विचारों का दुष्प्रभाव हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ चारों ओर सम्पूर्ण विश्व पर पड़ रहा है । हम केवल अपने सुख दुख की सीमा तक ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण विश्व, सम्पूर्ण मानव जाति और सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति भी हमारा दायित्व है । इसलिए प्रत्येक सम्बन्ध के प्रति हमें अपना दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। सम्बन्धों को निभाने के लिए प्रचलित त्रुटिपूर्ण विधि को समझदारी से संशोधित करने का प्रयास करना होगा। प्रत्येक स्थापित सम्बन्ध के पीछे छिपे हुए आध्यात्मिक विकास का मार्ग हमें ही तलाशना होगा। हमें अपने अविनाशी शान्त स्वरूप, प्रेम स्वरूप और आनन्द स्वरूप में स्थित रहते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण द्वारा जटिलता भरे समस्त कार्मिक सम्बन्धों से मुक्ति पाकर संसार की प्रत्येक आत्मा को भी दुषित कार्मिक बन्धनों से मुक्ति दिलाने का ईश्वरीय कर्तव्य निभाना होगा। तभी हम स्वर्णिम युग की स्थापना का स्वप्न साकार कर पाएंगे ।

– मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान , मोबाइल नम्बर 9460641092

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