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जीवन का पथ – प्रियदर्शिनी पुष्पा

ये बीहड़ सा जीवन का पथ

शून्य में अविराम गति को थामे

निर्बाध चलता जा रहा है।

नित अणगिणत प्रतिकूल परीक्षाएँ

विचलित वेदनाओं को

चेतना में परिस्कृत कर

संतुष्टि की पथ अनुगमन कर रही है।

श्वांसें घुटन के पहरों में घिरे

सहजता को विक्षिप्त कर

मन के नूतन भावनाओं को

नीयती के सामने बौना बनाकर

अंतस्थ में घुटता सिसकता

दम तोड़ता जा रहा है।

क्या है ये…..

सृष्टि का स्वाभाव

या  तेरे पारलौकिक

नीति का नवीनीकरण।

क्या वायुमंडल इसी तटस्थ

क्रूर नीति के कुचक्र में

स्वच्छंद साँसे भरकर खुश है…

कहीं समंदर के पिपासे को

अनादि विस्तार

अनंत अनुकूल सुंदर संसार

देकर भी खुश नहीं होते

उन्हें और विशाल काय बनाने

को प्रतिक्षण विधान लिखते चले जाते

तो कहीं

ऋतुओं के अतल प्रतीक्षा के पश्चात्

कुछ बुँदों के दान में भी

असफल सा प्रतीत होते हो…

अद्भुत है नीयती का फलातिफल..

एवं

अद्भुत है इस भव्य मंडल का

लेखा जोखा….

जन्मांतरों का कर्म स्मृतियों में नहीं

परंतु

जन्मों के कर्म फल का लेख निर्बाध

चलता  रहता है।

– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर

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