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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

नुकसान ही नुकसान है कोई नफ़ा नहीं ।

दिल को चुराने के लिए कोई सज़ा नहीं ।

 

गलती हुई थी एक इश्क हो गया मुझे,

खाना ख़राब हूं मगर उनसे खफ़ा नहीं ।

 

मुल्हिद शराब पी गया मस्ज़िद में बैठकर ,

पूछा तो बोलने लगा कोई खुदा नहीं ।

 

मंदिर में एक सिरफिरा देने लगा दलील ,

पत्थर कभी कोई दुआ करता अता नहीं ।

 

साकी तेरी निगाह ने आबाद कर दिया ,

अब कोई शराबी कहे मुझको गिला नहीं ।

 

वादा खिलाफ़ी का उसे भी ख़ूब तजुर्बा ,

मगरूर है थोड़ा मगर वो बेवफ़ा नहीं ।

 

जो कौम अपने आप को रखती है संगठित ,

ऐसी किसी भी कौम पर होती जफ़ा नहीं ।

 

लाखों करोड़ खा गए नदियों ने नाम पर,

सरकार से अब भी हुईं नदियां सफ़ा नहीं ।

 

फांसी लगे चौराहे पे वहसत के जुर्म पर,

“हलधर ” किसी कानून में ऐसी दफ़ा नहीं ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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