मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

इस दिल में तुझे बसा रखा है ,

राज ये जमाने से छुपा रखा है।

 

तू माने या ना माने जाने-वफ़ा,

सदियों से अपना बना रखा है।

 

बस इक तेरे आने के ख्याल से,

घर अपना कब से सजा रखा है।

 

है बेशक दूर तू मुझसे मगर मैंने,

तेरी चाह में खुद को भूला रखा है।

 

याद में उनकी उभर आई हूक़ सी,

मगर होठो को अपने दबा रखा है।

 

हर रोज़ करता हूँ ख्याल तेरा ही,

पर नसीब को भी आजमा रखा है।

 

शायद तुम्हारे मुकाबिल न था मैं ,

खुद ही खुद को ये समझा रखा है।

 

बेवफा आये न आये मगर निराश,

वक्ते-आखिर उसे भी बुला रखा है।

– विनोद निराश, देहरादून

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