एक तेरा प्यार पावन ,
शेष सब कुछ है अपावन ।
मैल धोना नित्य पड़ता,
देह मृण्मय है अभागी ।
एक क्षण वैराग्य देती,
दूसरे क्षण प्रीत जागी ।
थक गई हूँ मृत्तिका का
हाय ! कर श्रृंगार चंदन ।
शेष सब कुछ है अपावन ।
नित्य दर्पण देखती हूँ,
रूप कुछ बदला लगे नित ।
गर्व देती देह सौष्टव……
चंद क्षण हर्षित रहे चित ।
किन्तु चिन्मय हो न सकता—-
जानती हूँ छद्म यौवन ।
शेष सब कुछ है अपावन।
मान लूँ मधुमास प्यारा ,
तथ्यतः यदि हो चिरंतन ।
पोछ देती किन्तु आँसू ,
चक्षु का सर्वस्व अंजन ।
इसलिए ही जड़ जगत के—
राग तक टिकता न अब मन ।
एक तेरा प्यार पावन,
शेष सब कुछ है अपावन ।
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, नई दिल्ली