दूर हो तुम कुछ कमी सी क्यूँ लगे,
आँख मे भी ये नमी सी क्यूँ लगे।
क्यूँ अधूरी सी लगे यह जिंदगी,
बिन तेरे सांसे थमी सी क्यूँ लगे।
जब जखीरा इश्क़ का हो वस्ल में.
फिर हया भी ये भली सी क्यूँ लगे।
भर उठे जब चाहतो से दिल मेरा,
तब हवाये भी चुभी सी क्यूँ लगे।
पास तुम मेरे नही मालूम है ,
रूह मुझमें है बसी सी क्यूँ लगे।
दूरियों में तेरी यादे ओ सनम
प्यार की सावन झड़ी सी क्यूँ लगे।
जब तपिश “झरना” जुदाई में बढ़े
फिर वफ़ा मे नर्मी सी क्यूँ लगे।
– झरना माथुर, देहरादून