आतंकी कीड़ा लगता मानस से बहुत बड़ा था ।
केसर की घाटी में तब कश्यप कुल दुखी खड़ा था ।
चाँद लिए फिरता था अर्थी सूरज की कांधे पर ,
भारत माता के मांथे पर पत्थर कौन जड़ा था ।।1
लिए गोद में लाश खड़ी थी, घाटी में मानवता ।
घृणा लिए चित्त में फिरती, सड़कों पर सुंदरता ।
बंधक था गांडीव कभी संसद के गलियारों में ,
पार्थ कृष्ण ने नहीं दिखाई थी रण की आतुरता ।।2
कांधे रोज उठायीं लाशें वीरों की रो रो कर ।
आलिंगन कर रही मौत घाटी में सैनिक ढोकर ।
कोई कुछ भी कहे यहां पर नीयत साफ नहीं थी ,
प्रश्न किया हल मोदी दफा तीन सौ सत्तर धोकर ।।3
लगा हुआ प्रत्येक यहां गद्दी की तैयारी में ।
भरा हुआ है मैल यहां मज़हब की अय्यारी में ।
अगर एक जुट नहीं हुए तो मिटना “हलधर” तय है ,
दिल्ली का रथ रोक रहे , कुछ नेता मक्कारी में ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून