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उजयाड़ (गढ़वळी कहानी) – हरीश कण्डवाल

Neerajtimes.com – “आ ले बौड़ जा म्यार ज्वाधा”, शाबाश, कख जे जाणा कळं मा, ले व्हॉ सींधा चल, डामर पड़ल तेरी गेरी मा, है नरभगी, बुल्ला ले,  कख छे मन्ना, फुंड कख जाणी छेयी, नत्थू हळ लगांद बगत, बळदूं दगड़ी इनी कबरी लाड़ से कब्बी गुस्सा मा हळ लगांद बगद बुलणा रंद छ्यायी। बळद जुतण से पैल जौ डिण्डी जरूर खलांण भदवाड़, मुण्डेड़ी व्हाव या मवेसी, द्वी माणी घी अर तेल बळदू कुणी पैल तैयार रखदू छ्यायी।  बळद भी नत्थू बुल्यां पर खूब हिटद छ्यायी।

मुण्डेड़ी  बाण बगत नत्थु सुबेर द्वी फॉगी हळ लगैन, वैक बाद बळद खोली कन हळ दुसर पुगड़ी मा सुबेर कन धरी कन ऐथर घर चली ग्यायी। छूट बळद चरद चरद मंगसिरी बौ गथवड़ उजयाड़चली गीन।  मंगसिरी बौ सब कुछ सै लींद छेयी पर उजाड़ जयां गोरू बखरू तै नी सै सैकदी छेयी। सिलड़ पुगंड़ी गहथ पर खूब फुळड़ लग्या छ्यायी, बळदू चपट करी कन खै दीन।

मंगसिरी बौ घास लेकन आणी छेयी, जनी नजर बळदू उजयाड़ खयीं पर ग्यायी, बस उखमी चबट करी कन गाळी दीण शुरू करी द्यायी, उजयाड़ गोर खांद छ्यायी अर गाळी मालिक तै दींद छ्यायी।  बस मंगसिरू बौ कळीं मा खड़ व्हे कन कपळी मा हत्थ धरी कन गौ तरफा देखीकन बुलणा छेयी, निखंया सी गोर दुसर बग्वाळ, नी पचैन सी गहथ, अपर शरील खपै मील सरा बरसात तौ गहथ निळण मा।   नत्थु घर ऐकन चाय पीणा छ्यायी, हल्ला सुणी कन समझी ग्यायी कि आज बळद उजाड़ बैठी गीन तब्बी मंगसिरू बौ आज घुरबिताळ बणी च।  अब बुलण भी क्या छ्यायी जू हूण छ्यायी सी व्हे ग्यायी।

यी किस्सा नत्थू काका अपर बॉझ पुंगड़ी मा बैठीकन अपर समधी तै सुणाणा छ्यायी अर बुलणा छ्यायी कि यूं पुगड़यूं बाना उंक द्दा अर बुब्बा जमन मा वाड़ सरकाण मा ही गंजयळ निकळी जांदी छेयी, येक दुसर दगड़ी रोज लड़ै हूणी रैंद छेयी, क्वांज खैणी कन नाज बुतद छ्यायी। वै जमन करों दीयीं गाळी आज फलीभूत हूणा छन कि नी खयां तौ पुंगड़ी नाज, बांझ पड़ी जैन सी पुंगड़ी, आज  सी सब्ब पुंगड़ी बांझ पड़ी छन, मंगसिरू बौ जी क्या सब्बी उजाड़ खाण मा इनी गाळी दींद छेयी, कथगा भी कुछ कर ल्याव गोरू उजाड़ चली जांद छ्यायी।

समधी न ब्वाल ठीक बुलणा छ्याव तुम, अब गोरू उजाड़ नी जाणा छन अब मनखी छन उजाड़ गिज्यां, हैंक हिस्सा भी अफीक खाणा छन, सी देखी ल्याव जब बिटी यी मनरेगा अर मुफत राशन आयी तब बिटी ना गोरू कदर अर ना पुंगड़यूं कदर।  जमन वी छ, बस बदले गीन त जरूरत अर लोग, किलै कि जमनू व्हाव या प्रकृति वा भी उनी च, बस नी छन उन त मनखी। मनखी अब मयळ नी रै गीन, अब सब अड़मिल व्हे गीन, किलै कि सब्यूं मा द्वी पैसा ऐंगीन, अब कै तै कैकी जरूरत नी छ, अर ना क्वी समझणा।  ब्यौ बरात, लगै कान क्वी भी कारिज व्हाव बस नोट अर दारू बोतल मा सब्बी काम निपटणा छन।

क्या कन समधी जी अब त सरकरी बजट उज्याड़ खयाणा, जैक पता नी चलणू कि गौड़ खायी कि बळद ना खायी कि कलौड़ी ना खायी या सांड़ ना खायी या फिर जगंळी जानवर खायी या फिर पळयां अपरी गोरून खैन, पकड़याणा भी छन त छ्वट गोरू जोन बड़ू गोरू थुंथर चटीन, जबकि पछड़न व्हाळ दीखणा छन कि कै बळद सींग पर उज्याड़ घास अर मुण्डी माटू लगयूं पर तब्बी सब यीनी बुलणा छन कि अपर बाछी चौंरी पूंछ नी दिख्यांद।

सी देखी  तुम ल्याव जौन उज्याड़ खायी भी छ उंते दिखाणा कुणी सुदी मुदी पकड़ी भी छ, सी सै सै करी कन जेल बिटी भैर भी ऐ गेन। बड़ बड़ गोरू जोन सच मा उज्याड़ खायी उ आज भी गुठळू आड़ पर आज भी हैंक पुंगड़ मा बैठीकन मजा सा उज्याड़ खाणा छन। बस हमरी त मंगसिरी बौ जणी दुन्या दारी व्हे ग्यायी द्वी घड़ी गाळी अर घ्याळ वैक बाद सब्ब चुप व्हे जंदीन, किलै कि सब्ब फिर सब्ब अपर अपर काम धंधा मा लगी कन इनी बुल्दन कि फंड फुको म्यार ल्याखन हूण देयी, कैन कुछ नी कन, बस यीं उम्मीद मा फिर उज्याड़ गोरू तै आदत ही पड़ी जांद।

– हरीश कण्डवाल मनखी, सतपुली, उत्तराखण्ड ।

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